लेखनी कहानी -22-Sep-2022 जय महाराणा जय मेवाड़
बात उन दिनों की है जब मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप हल्दीघाटी के सन 1576 के युद्ध के बाद वन वन भटक रहे थे । सेना छिन्न भिन्न हो गई थी । पैसा पास था नहीं । और तो और खाने को दाने भी नहीं थे । तब एक सेठ भामाशाह महाराणा से आकर मिले और उन्हें अपना समस्त खजाना सुपुर्द कर दिया । इस धन से महाराणा में एक नया जोश पैदा हो गया और उन्होंने भीलों को प्रशिक्षित कर एक सेना तैयार कर ली । धीरे धीरे एक एक कर वे अपने खोये हुये किले वापस जीतने लगे । राजपूत भी अब दुगने उत्साह के साथ महाराणा का साथ देने लगे ।
देखते ही देखते महाराणा ने कुंभलगढ पर आक्रमण कर उस पर कब्जा कर लिया और उसे अपनी राजधानी बना लिया । अब यहीं से सैन्य अभियान संचालित होने लगा । महाराणा प्रताप के साथ उनके वीर प्रतापी पुत्र अमरसिंह भी मेवाड़ी सेना का नेतृत्व करने लगे थे । पूरे मेवाड़ में महाराणा की धाक फिर से बैठ गई थी ।
दिल्ली के बादशाह अकबर को यह सब कैसे मंजूर होता ? वह तो महाराणा का समूल नाश चाहता था । वह बार बार मुगल सेना मेवाड़ भेजता लेकिन हर बार मुगल सेना मेवाड़ की सेना से पराजित हो जाती थी । इससे अकबर और भी अधिक तिलमिला जाता था । वह मेवाड़ पर पूर्ण आधिपत्य चाहता था । वह जानता था कि जब तक मेवाड़ स्वतंत्र रहेगा भारत पर मुगलों का शासन कभी भी स्थायी नहीं हो सकता है । मेवाड़ में इतनी शक्ति थी कि वह कभी भी मुगलों को खदेड़ सकता था । इसलिए वह इसी उधेड़बुन में लगा रहता था कि किस तरह महाराणा प्रताप पर काबू पाया जाये ।
सन 1580 में अकबर ने एक विशाल सेना के साथ अब्दुर रहीम "खान ए खाना" को मेवाड़ विजय हेतु भेजा । ये अब्दुर रहीम वही हैं जिन्हें हम लोग रहीमदास जी के नाम से भी जानते हैं । जिनके दोहे आज भी बहुत प्रसिद्ध हैं । एक बहुत बड़े लेखक, योद्धा और कृष्ण भक्त थे अब्दुर रहीम । इन्हें अकबर ने मिर्जा की उपाधि से नवाजा था ।
रहीमदास जी अपने लाव लश्कर और अपने "हरम" के साथ चल पड़े । उन्होंने अपना पहला पड़ाव अजमेर में डाला । उसके बाद ये पुन: मेवाड़ पर चढाई के लिये निकल पड़े । तब इन्होंने दूसरा पड़ाव गोगुन्दा के पास शेरपुर गांव में डाल दिया ।
महाराणा प्रताप को अब्दुर रहीम के सैन्य अभियान की जानकारी मिल चुकी थी । उस समय तक कुंवर अमरसिंह 21 वर्ष के हो चुके थे । उनकी कद काठी महाराणा कुंभा की तरह विशाल थी । जोश आसमान छू रहा था उनका और पराक्रम दिखाने के लिये युवा अवस्था बेचैन हो रही थी । कुंवर अमरसिंह ने मेवाड़ सेना का नेतृत्व कर मुगलों को सबक सिखाने की इच्छा महाराणा के सम्मुख व्यक्त की । अन्य मेवाड़ी सरदारों की सलाह पर महाराणा प्रताप ने कुंवर अमरसिंह को अपनी सेना का सेनापति नियुक्त किया और तिलक लगाकर विजय श्री वरण करने का आशीर्वाद देकर उन्हें युद्ध के लिये रवाना किया ।
कुंवर अमरसिंह चुने हुये योद्धाओं की एक छोटी सी सेना लेकर शेरपुर के लिये रवाना हो गये । मुगलों को इसका जरा भी अंदेशा नहीं था कि राजपूत इस तरह से आक्रमण कर देंगे । कुंवर अमरसिंह ने मुगल सेना में गदर मचा दिया । मुगलों को हर सैनिक अमरसिंह लगने लगा । एक ही पल में अमरसिंह ने मुगलों की सेना को मार भगाया । मुगल सैनिक या तो मारे गये या भाग खड़े हुये । कुंवर अमरसिंह ने मुगलों पर विजय प्राप्त कर ली थी ।
अब अब्दुर रहीम खान ए खाना का हरम बच गया था । इसमें अब्दुर रहीम की पत्नियां और बच्चे शामिल थे । अब्दुर रहीम भाग गया था । कुंवर अमरसिंह ने यह सोचकर कि यदि अब्दुर रहीम के हरम के लोगों को बंदी बना लेंगें तो इससे जल्दी ही अब्दुर रहीम आत्म समर्पण कर देगा , उन्हें बंदी बना लिया और उन्हें लेकर कुंभलगढ आ गया ।
अब्दुर रहीम के हरम को महाराणा प्रताप के समक्ष प्रस्तुत किया गया । महाराणा को जब यह पता चला कि ये अब्दुर रहीम खान ए खाना की स्त्रियां और बच्चे हैं तो वे आग बबूल हो गये । उन्हों कड़क कर कुंवर अमरसिंह से पूछा
"इन्हें किसने बंदी बनाया है" ?
सभा में एकदम सन्नाटा छा गया । महाराणा प्रताप का ऐसा रौद्र रूप अभी तक किसी ने नहीं देखा था । उस समय भी नहीं जब मानसिंह ने उन्हें सबक सिखाने के लिये कहा था । उनके क्रोध को देखकर सब सरदार डर गये । सब सोचने लगे कि पता नहीं महाराणा अब क्या करेंगे ?
इतने में डरते डरते कुंवर अमरसिंह खड़े हुये और कहने लगे "खम्माघणी, इन्हें मैंने बंदी बनाया है" । और अमरसिंह नीची गर्दन कर खड़े हो गये ।
महाराणा ने बिजली की भांति गरज कर कहा "किसके आदेश से " ?
इस प्रश्न का जवाब किसी के पास नहीं था । सब सरदार बगलें झांकने लगे । अमरसिंह को भी अपनी भूल का अहसास हो गया था मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी । अब महाराणा के क्रोध से कौन बचायेगा उन्हें ?
"बोलो , चुप क्यों हैं सब लोग" ? सन्नाटे को चीरती हुई महाराणा प्रताप की गंभीर आवाज गूंजी ।
"खम्माघणी, मेरे आदेश से इन्हें बंदी बनाया गया है" । नीची गर्दन किये हुए कुंवर अमरसिंह ने कहा
"कायर , मेवाड़ी कुल में पैदा होकर भी तुझे मेवाड़ की मान मर्यादा का जरा भी भान नहीं है । मेवाड़ में स्त्रियों का आदर किया जाता है । उनकी पूजा की जाती है । वे चाहें मेवाड़ की हों या मुगलों की । हमारी दुश्मनी मुगलों से है न कि उनकी स्त्रियों से । स्त्रियों को बंदी बनाना मेवाड़ में जघन्य अपराध माना जाता है । आज तूने मेवाड़ की आन बान और शान सब मिट्टी में मिला दी है । आज तुझे अपना बेटा कहने में भी मुझे लज्जा आ रही है" । और यह कहकर उन्होंने क्रोध में अपना भाला सामने दीवार पर दे मारा । दीवार में छेद करता हुआ वह भाला आरपार हो गया ।
कुंवर अमरसिंह महाराणा के कदमों पर झुक गये और अपने अपराध के लिए क्षमायाचना करने लगे । अब्दुर रहीम की पत्नियां यह सब दृश्य देख रही थीं । महाराणा प्रताप का यह व्यवहार उनकी समझ से परे था । वे मन ही मन महाराणा को इस व्यवहार पर धन्यवाद भी दे रही थीं ।
"मैं कौन होता हूं तुम्हें क्षमा करने वाला । तुम जिनके अपराधी हो उनसे क्षमा मांगो, जाओ" । महाराणा प्रताप ने कुंवर अमरसिंह को आदेश दे दिया था । कुंवर अमरसिंह अपराध बोध से ग्रसित होकर अब्दुर रहीम खान ए खाना की पत्नियों के सम्मुख अपराधी की तरह सिर नीचा किये खड़े हो गये ।
अब अब्दुर रहीम की पत्नियां बोलीं "कुंवर को क्षमा कर दीजिए हुजूर । इसमें इनका कोई दोष नहीं है । इनकी उम्र अभी है ही क्या हुजूर । बच्चे हैं अभी । हमने इन्हें क्षमा कर दिया है आप भी इन्हें क्षमा कर दें हुजूर" । हाथ जोड़कर वे खड़ी हो गईं ।
"कुंवर अमरसिंह । तुम्हारी सजा यही है कि इन्हें ससम्मान वापस छोड़कर आइये । जो कलंक आपने मेवाड़ के माथे पर लगाया है उसे मिटाइये । और सभी लोग ध्यान से सुन लो । ऐसी गलती भविष्य में नहीं होनी चाहिए नहीं तो कड़ा से कड़ा दंड दिया जायेगा" ।
"जय महाराणा , जय मेवाड़" के नारों से आसमान गूंज उठा ।
हरिशंकर गोयल "श्री हरि"
22.9.22
Babita patel
24-Aug-2023 06:49 AM
amazing
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Barsha🖤👑
24-Sep-2022 10:01 PM
Beautiful
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Seema Priyadarshini sahay
24-Sep-2022 06:45 PM
बेहतरीन रचना
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